3 नवंबर 2010

साईकिल - कॉमेडी कथा

उम्रके छे सालसे उम्रके बाईस साल तक जादातर मेरा समय साईकिलपर गया. इसलिए साईकिलके साथ एक नजदिकी एक अनोखा रिश्ता रहना लाजमी है. नजदिकी वो भी इतनी दिर्घ समय तक... यहां गलतफहमी होनेकी संभावना है . या फिर कोई कहेगा पहलेही इतने प्रकार क्या कम थे की इस नये अनोखे प्रकार का अविश्कार करनेकी जरुरत आन पडी. ... तो जिवनके बहुतसे अच्छे बुरे समयमें साईकील ने मेरा साथ निभाया.

जब मेरी सही उम्र होगई ... मतलब साईकिल चलाने के लिहाज से. तब छोटी साईकिलें नही थी ऐसा नही. लेकिन हमें सीख ही ऐसी थी की जो है उसमें एडजेस्ट करना चाहिए. इसलिए डायरेक्ट बडी साईकिल सिखने के पिछे मै पड गया. एकबार अपनी सीख भूलकर मैने घरमें जूते लेने की जिद की. जिद के बैगेर कुछ मिलनेवाला नही ऐसा मेरे बचपनके गुरु का कहना था. जुते मिले... लेकिन पीठ पर. इसलिए मै छोटी साईकिल का विचार त्यागकर डायरेक्ट बडी साईकिल सिखने लगा.

अब बडी साईकिल कैसे चलाई जाए? मेरी उम्रके लडके डंडे के निचेसे एक पैर डालकर साईकिल चलाते थे. उसे हम कैंची कहते थे. पहले पहले आधा पायडल मारकर साईकिल चलाना ... उसे हम हाफ कैची कहते थे. और पुरा पायडल मारा की होगई फुल कैंची.

मेरे अविश्कारी स्वभाव के कारण मै साईकिल जल्दी सीख गया. हाफ कैंची से फुल कैंची पर आगया. मेरा अविश्कारी स्वभाव मुझे चैन से बैठने नही दे रहा था. यहा अविश्कारी की बजाय मैने शरारती या पाजी यह शब्द इस्तमाल किया होता... . लेकिन आगे जहां जहां शरारती या पाजी यह शब्द आया है वहा कौनसा शब्द इस्तमाल करना चाहिए यह गहन प्रश्न मेरे सामने उत्पन्न हुवा होता. हमसें बडे लडके हाथ छोडकर साईकिल चलाकर शेखी बघारते थे. मै भी हाथ छोडकर साईकिल चलाने का प्रयास करने लगा. सबसे पहले मैने एक हाथ छोडकर साईकिल चलाना सिख लिया. लेकिन उतनेसे संतोष माननेवाला मै थोडे ही था. ? इसलिए दोनो हाथ छोडकर देखे. रास्तेके किनारे पत्थरोंमे जाकर गीर पडा. दोनों हाथ छोडकर कैची चला नही सकते यह मै स्वानुभव से सिख गया. वैसे गिरने का एक फायदा भी हूवा. मेरा सामने के एक दात को किडा लगा था. सारे दात गिरकर दुसरे आये थे. लेकिन वह साला गिरने का नाम नही ले रहा था. साईकिलसे गिरने की वजह से वह दात अपने आप मेरे हाथमें आया . ....अच्छा वह तो आया ही, साथ मे दुसरे एक बगलके बेगुनाह दात कोभी साथ ले आया.

जैसे जैसे उम्र बढ रही थी वैसे वैसे मेरी तरक्की हो रही थी ... मतलब साईकिल चलानेमें. अब तो मै डंडेपरसे साईकिल चलाने लगा. सिर्फ साईकिल चलानेमेंही नही तो साईकिल से जुडी सारी बातोंमें मै महारथ हासील कर रहा था. गुस्सैल टिचर की साईकिल की हवा निकालना, उनपर का गुस्सा उनके सायकिल के सिट पर उसे ब्लेड से फाडकर निकालना. उस वक्त मुझे तो हमेशा लगता था की नोबेल प्राईज में के 'नोबेल' का साईकिल को बेल ना होनेसे जरुर कोई समंध रहा होगा. एक बार मै डंडेपरसे साइकिल चला रहा था. तब बेलबॉटम की फॅशन थी. साईकिलकी बेल बजानेके चक्करमें मेरे बेलबॉटम की बेल साईकिल के चैनमे अटक गई. ऐसी अटक गई की निकालते निकल नही रही थी. खिंचकर निकालने के प्रयासमें वह पॅंट साईकिलकी चैनसे लेकर पॅंटकी चैन तक फट गई. वह देखकर हमारे क्लास की लडकियॉ मुंह पर हाथ लगा लगाकर हंस रही थी. एक बार मेरी साईकिल ढलान से जोरसे निचे आ रही थी. आगे से एक लडकी हौले हौले साईकिल चलाते हुए ढलान से उपर चढ रही थी. अचानक वह बिचमें आगई. बडी मुष्कीलसे टक्कर बच गई. लेकिन वह बेल बजाकर 'डूक्कर... डूक्कर' चिल्लाकर मझे चिढाने लगी. मै क्या उसे ऐसेही छोडता. मै भी पिछे पलटकर चिल्लाने लगा " तु डूक्कर तेरा बाप डूक्कर तेरा पुरा खानदान डूक्कर '. आगे जब मै एक डूक्कर के झूंडसे टकराकर निचे गिर गया ... तब मुझे समझमें आया की बेचारीको क्या कहना था.
साईकिलकी अलग अलग ट्रीक्स सिखनेमें मुझे जादा वक्त नही लगा. घंटी बजाकर इशारे करना, कट मारना, कट मारना यह प्रकारमे तो मैने विषेश महारथ हासिल की थी. साईकिलकी चैन कैसी बिठाना इतना ही नही तो साईकिल की चैन कैसे गिराना यह भी मै सिख गया. ताकी ऐन वक्त कीसी घरके सामने मटरगश्ती करनेमें दिक्कत ना हो. एक बार ऐसाही मै साईकिल डंडेसे चलाते वक्त अचानक गिर गया. ऐसा जोर से गिरा की पुछो मत. उठकर खडे होकर किसीकोभी टक्कर ना लगते हूए मै कैसा गिरा यह ढूंढने लगा. तबतक दो तिन तमाशबीन वहां जमा हो चूके थे. उसमेंसे एकने कहा '' चेन निकल गई है''

असलमें डंडेसे साईकिल चलाते वक्त साईकिलकी चैन निकल गई थी . इसलिए मै गिर गया था. लेकिन उसने '' चेन निकल गई है'' कहतेही कुछ ना समझते हूए झटसे मैने अपने पॅंटकी चैन चेक कर ली. हो सकता है घरसे निकलते वक्त खुली रही हो.

एक दिन मै और मेरा मित्र राजा डबलसीड़ जा रहे थे. लडकोंको डबलसीट लेनेके आगे अभी मै नही गया था. सामनेसे एक साईकिलवाला बॉल दबाये जैसे इशारे कर एक फटफटी वालेको कुछ बोलनेका प्रयत्न कर रहा था. जैसा की अपेक्षीत था पिछे बैठे राजाने पुछा, '' अरे क्या बोल रहा है वह?''

'' अरे कुछ नही ... हेडलाईट शुरु है ऐसा बता रहा है...'' मैने कहा.

'' सालोंको मुफ्तमें बिजली इस्तेमाल करने की आदतही है... क्या करेंगे '' राजा चिढकर बुदबुदाया. मै अपना चूपचाप साईकिल चला रहा था. इतनेमें सामनेसे एक दुसरी फटफटी आगई. राजाने उसके हाथकी बिच वाली ऊंगली हिलाकर उस फटफटी वालेको कुछ अजिब इशारा किया. राजा अचानक ऐसा कुछ करेगा इसकी मुझे अपेक्षा नही थी.

मै राजाको '' चूप बैठ ... मार खिला एगा क्या?'' कहकर साईकिल जोरसे चलाने लगा.

राजा पिछे मुडमुडकर उस फटफटी वालेको वही इशारा कर रहा था. वह फटफटी वाला क्या बदमाश लडके है इस अविर्भावसे देख रहा था. मैने उस फटफटीवालेको मुडकर हमारे पिछे आते देखा. मैने मन ही मन प्रार्थना की, '' भगवान... अब तुही बचारे बाबा.. कैसी दुर्बुद्धी हुई जो इस राजाको पिछे बिठाया. फिरभी राजाका अपना बिचवाली उंगली हिलाकर इशारा करना जारी था. उस फटफटी वालेने हमारे साईकिलके सामने अपनी फटफटी घुसाकर रोकी. मुझे ब्रेक लगानेके सिवा कुछ चारा नही था. उसने फटफटीसे उतरकर सिधे राजाकी कॉलर पकडकर एक जोरदार झापड उसके कानके निचे जमाया.

'' अंकल सुनो तो..'' बेचारा राजा कुछ बोलनेका प्रयास कर रहा था.

उस गाडीवालेने और एक उसके कानके निचे जमाई और फिर कहा, '' हां, अब बोल..''

'' अंकल .. कबसे मै आपको बत्तानेकी कोशीश कर रहा था की आपके गाडीका साईड स्टॅंड उपर है करके...'' बेचारा राजा लगभग रोनेको आकर अपनी बिचवाली उंगली हिलाकर बोल रहा था.
एकबार हम दोस्त दुसरे गांव गए. दूसरे गाव जाकर साईकिल चलाना और वह भी किराएसे लेकर मजा कुछ और ही होती है. वैसे दुसरे गावको करनेके लिए बहुत सारी मजेवाली बाते होती है. ... अब यह सब मैने आपको बताना नही चाहिए... क्योंकी उसमें मेराही अज्ञान जाहिर होनेका डर है... राम्याने और मैने एक साईकिल किराए से ली. राम्याके सरपर साइकिलका इतना पागलपन सवार था की किसी दुसरे गाव गए तो पहले यह क्या देखेगा की वहां साईकिलका दुकान कहा है. इतनाही नही उसे किसीने अगर बताया की अरे कल साईकिलसे जाते हूए मेरा ऍक्सीडेंट होगया है तो यह तुरंत पुछेगा ' साईकिलकोतो कुछ नही हुवा ना?'. किराएके साईकिलको कॅरीयर नही रहता है. एक डंडेपर बैठेगा और दुसरा साईकिल चलाएगा.

किराएकी साईकिल लेकर हम खुब घुमें. प्यास लगी इसलिए एक टपरीके सामने साईकिल लगाई. मस्त चाय पी. वहांसे निकले तो सिधे शाम होनेतक घुमते रहे. बिच बिचमें रुककर जेबके पैसोंका और इस्तेमाल कीये घंटोंका तालमेल होता की नही यह देखते थे. नहीतो उस साईकिलवालेको एक दिनके लिए क्योंना हो.. फौकटमें पंचर निकालनेवाला मिल जाएगा. शामको साईकिल वापस करनेके लिए गए.

'' कितने हूए'' राम्याने साईकिल साईकलवालेके हवाले करते हूए पुछा.

साईकिलवाला बोला, '' अरे... यह किसकी साईकल ले आए तुम... यह मेरी साईकिल नही है...''

हम तो हक्के बक्के ही रह गए.

'' अरे तेरा दिमाग तो ठिक है?'' राम्याने कहा.

'' हम सुबह तेरेसेहीतो ले गए थे यह साईकिल''

'' वह मुझे पता है... लेकिन यह किसकी साईकिल लाई तुमने?'' साईकिलवाला बोला, '' यह विमल साईकिल स्टोअर वालेकी ... उसका दूकान बसस्टॅंडके पास है... मेरा देखो कमल साईकिल स्टोअर्स...'' उसने अपने बोर्डकी तरफ निर्देश करते हूए कहा. हमने उसके एक किलेको लटककर कसरत कर रहे बोर्डकी तरफ देखा. उस बोर्डपर क्या लिखा है यह पढनेके लिए हमें गर्दनके काफी व्यायामके प्रकार करने पडे. सचमुछ वह उसकी साईकिल नही थी.

'' अब आगई ना आफत '' मैने राम्यासे कहा,

'' राम्या... अब मेरे खयालमें आया... अरे हम जब चाय पिनेके लिए उस टपरीपर रुके थे... वहां शायद अदला बदली हूई है... और हम यह दूसरेही किसीकी साईकिल अपने साथ ले आए''

'' लेकिन साईकिलकोतो लॉक था'' राम्याने कहा.

'' उसकी चाबी इसको लग गई शायद... ऐसा होता है कभी कभी'' मैने कहा.

'' इसका मतलब अपनी साईकिल कमल सायकलवालेके पास गई होंगी..'' राम्याने कहा.

राम्याके दिमागमें सिर्फ प्याज टमाटर ही भरे ना होकर औरभी कामका कुछ भरा हुवा है यह मेरा विश्वास पहली बार दृढ हूवा. लेकिन दुसरेही क्षण राम्याने एक गहन सवाल पुछा और मेरा विश्वास भिरसे कमजोर पड गया.

'' अब हमें बस स्टॅंडपर कमल साईकिल स्टोअर्सवालेके पास जाना पडेगा.. जाते हूए हम उसके इस साईकिलपर जा सकते है... लेकिन वापीस आते हूए कैसे आएंगे.''

हम दोनो फिरसे साईकिलपर बैठे और बस स्टॅंडकी तरफ रवाना हो गए... कमल साईकिलवालेके पास.

वहां पहूंचे तो '' यह आगई ... यह आगई '' कहते हूए एक ग्राहकने खुशीसे हमारा स्वागत किया.

उसके पास हमारी साईकिल थी. दोनो साईकिलें दिखनेमें एकदम सेम-टू-सेम थी. मानो सगी बहनें हो. वह ग्राहक अकेला था और हम दो थे.

हम दोनोंको देखकर वह चिढते हूए लेकिन दबे स्वरमें बोला, '' अरे कैसे हो तुम लोग? ... अपनी साईकिल के बजाय मेरीही साईकिल ले गए''

'' तुम ले गए की हम?'' गिनतीमें हम दो होनेका फायदा लेते हूए राम्या उसपर हावी हो गया.

'' तुम्हारा अच्छा ... कमसे कम लॉक तो खुला ... मेरा तो लॉकभी नही खुला... इतनी दुरसे पिछवाडा उपर कर कर चलाते हूये लाया इसको..'' वह फिरसे चिढकर बोला.

इसने पिछवाडा उपर कर साईकिल कैसी चलाई होगी इसकी कल्पना मै नही कर पा रहा था. मेरी तो हिम्मत नही बनी लेकिन राम्या सिधा उस आदमीके पिछवाडेकी तरफ अविश्वाससे देखने लगा. मेरे प्रश्नार्थक मुद्राकी तरफ और राम्याका अविश्वासभरी नजरका रुख देखकर वह बोला, '' अरे भले लडको... पिछवाडा इस साईकिलका ... मेरा नही... इस साईकिलका लॉक खुला नही इसलिए इसका पिछला पहिया उठाकर यहांतक धकेलते हूए लाया इसको...'' उसने साइकिलका पिछला पहिया उठाकर दिखाते हूए कहा.
अब हम साईकिलपर बैठकर काफिलेमें जाने लगे थे. काफिलेंमें साइकिल चलाना मतलब मजाक नही. एक का भी संतूलन बिगड गया तो बाकिका साईकिलके साथ गिरना लगभग निश्चीत. वैसे संतूलन बिगडनेकीही उम्र थी वह. हम 8-9 लोग गृपमें कॉलेज जाते थे. एक दिन गृपमें जाते वक्त ढीश... ट्यू... कीसीके ट्यूब फटनेका आवाज आया. हम सबलोग खिलखिलाकर हसने लगे. शाम्या मोटा होनेसे हसते वक्त पहले सिर्फ उसका शरीर हिलता था और हसनेका आवाज बादमें आताथा. जैसे बिजली चमकने के बाद होता है - पहले बिजली दिखती है और आवाज बादमें आता है. जबकभी हंसनेकी बात होती तब हंसनेकी पहली फेरी होनेके बाद हम शाम्याको हंसते हूए देखकर हंसनेकी दूसरी फेरी शुरु करते थे. शाम्याका चेहरा हसते हसते एकदमसे मायूस हो गया जब उसे पता चला की उसकेही साईकिलका ट्यूब फटा है.


एकबार हमारे साईकिल गृपका जोक सेशन हूवा. सेशनकी खांसीयत यह थीकी सब जोक्स साईकिलकेही थे. सबकी अपेक्षाके अनुरुप पहला जोक शाम्याने बताया - जोक बताने वक्त उसके पात्र भी हमारेंमेंसेही रहते थे ताकी जोकका औरभी मजा आए -

शाम्या जोक बताने लगा -

एक दिन सुऱ्या और संज्या साईकिलपर डबलसिट जा रहे थे. उनको एक ट्रफिक पुलिसने रोका. वह पुलिस उनको फाईन लगाने के उद्देशसे उनकी कसकर जांच पडताल करने लगा. लेकिन कुछ नही मिला. तब संज्याने गर्वसे कहा - आप हमे कभी पकड नही सकोगे... क्योंकी हमारा भगवान हमेशा हमारे साथ रहता है... ऐसा क्या फिर मै आप लोगोंको टीबलसीट साईकिल चलानेके जुर्ममें फाईन लगाता हूं ...

फिर संज्या जोक बताने लगा -

एकबार शाम्या मोट्या पैदल कॉलेजमे जा रहा था. पहले तो वह पैदल कॉलेजमें जा रहा था यही सबसे बडा जोक ... और दुसरा जोक, उसे एक साईकिलवालेने टक्कर मारी. टक्कर मारकर उपरसे वह साईकिलवाला बोलता क्या है - ' तुम किस्मतवाले हो ... तुम बडे किस्मतवाले हो'. शाम्याने पुछा 'कैसे?'

'' क्योंकी जनरली मै बस चलाता हूं..''

अब सुऱ्या जोक बताने लगा -

एक बार शाम्या नई कोरी साईकिल लेकर आया. तब संज्याने उसे पुछा - 'अरे नई साईकिल ली क्या?'

शाम्या बोला, ' अरे नही ... कल क्या हूवा ... मै घर जा रहा था तब सामनेसे एक सुंदर लडकी इस साईकिलपर आई. उसने साईकिल रोडपर फेंक दी. मेरे पास आकर उसने उसके बदनपरके सारे कपडे निकालकर रोडपर फेंक दीए और मेरे करीब आकर मुझे बोली, '' ले तुझे जो चाहिए वह ले''

संज्या बोला, '' तुमने बहुत अच्छा किया साईकिल ली ... क्योंकी कपडे तो तेरे कुछ काम नही आए होते''


कॉलेज खतम हूवा. जिंदगीकी रफ्तार बढ गई और साईकिल छुट गई. शायद जिंदगीके रफ्तारके सामने साईकिलकी रफ्तार कम पडती होगी. साईकिलके 'टायर' की जगह काम ना करते हूए आनेवाले 'टायर्डनेस'ने ली. साईकिलके 'सिट' के बजाय लडकोंके ऍडमिशनकी 'सीट' या फिर मंत्रीयोंके 'सीट' पर जादा चर्चा होने लगी. इतनाही नही 'स्पोक' यह शब्द 'स्पीक' का भूतकाल जादा लगने लगा. जिंदगी वही थी लेकिन जिंदगीके मायने बदल गए थे.

लेकिन अब बहुत सालोंके बाद फिरसे मै साईकिल चलाने लगा.

हर दीन .. हर दिन शामको बिस मिनट... डॉक्टरने कहां है इसलिए ! ...

समाप्त

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