6 मई 2012
ग़ज़ब है जुस्तजु-ए-दिल का यह अंजाम हो जाए !
कि मंज़िल दूर हो और रास्ते में शाम हो जाए !!
अभी तो दिल में हल्की-सी ख़लिश मालूम होती है !!!
बहुत मुमकिन है कल इसका मुहब्बत नाम हो जाए !!!!
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