3 नवंबर 2010

मार्केटिंग

बीवी के साथ मार्केटिंग को जाना एक सुखद अनुभव है. .. मतलब अपने अपने बिबी के साथ. इस बात से कोई भी इन्कार नही कर सकता ... खासकर अगर उनके बीवी के सामने पुछा जाए तो.

मै और मेरी बीवी मार्केटिंग के लिए गए थे. जैसे की हमेशा होता है वह आगे चल रही थी और मै पिछे चल रहा था. कुछ लेने लायक है क्या यह मै देख रहा था. एक दुकान पर लगे एक इश्तेहार ने मेरा ध्यान खिंच लिया.

लिखा था, " लहसून छिलने का यंत्र.... सिर्फ दस रुपए में ' "यंत्र' इस शब्द ने मेरी उत्सुकता बढाई ... वैसेतो आजकल किसी भी बात का यंत्र मील जाता है... दुकानमालीक के पास गया मैने उसे वह "यंत्र' दिखाने के लिए कहा. देखता हूं तो 6 इंच लंबी और 3 इंच परिघ की एक रबड की ट्यूब थी. मै उसे उलट पुलटकर देखने लगा. असल मे मै उस यंत्र को शुरु करने का बटन ढूंढ रहा था.

"अजीब बेवकुफ है ...' इस अविर्भाव मे उस दुकानमालीक ने वह ट्यूब मेरे हाथ से छीन लिया. अब वह दुकानमालीक उस यंत्र का मुझे डेमॉस्ट्रेशन देने लगा. उसने एक लहसुन ट्यूब मे डाला और वह उस ट्यूब को जोर जोर से रगडने लगा. अगर इतने जोर से रगडो तो साला लहसून छीलने के बजाय अपना हाथ ना छील जाये और इतने जोर से उस ट्यूब को रगडने की बजाय अगर डायरेक्ट लहसून को रगडो तो इतनी देर में कम से कम आधा किलो लहसून छील जायेगा अब "अजीब बेवकुफ है ...' इस अविर्भाव मे देखने की मेरी बारी थी.

इतनेमें " अजी देखिए तो... कान के झुमके ... कैसे लग रहे है ' बाजू के दुकानसे मेरी पत्नीने कहा. मै वहा गया. मै थोडा अलर्ट होगया क्योंकी अब उस दुकानमालीक के मार्केटिंग स्कीलसे मेरी मार्केटिंग स्कीलका सच्चा इम्तेहान था. मैने उस दुकानमालीकसे दाम पुछा

" दो सौ रुपए... आप है इसलिए देडसोमे देंगे' उसने कहा.

" आप है इसलिए ...' मैने उसे घुरकर देखा. मै उसे नही जानता था. हो सकता है वह मुझे जानता हो...

शायद उसने मेरे मन की बात भांप ली.

" पिछले बार भी मैने आपसे जादा पैसे नही लिए थे' उसने कहा.

वह मुझे कितना जानता है यह मै समझ गया - क्योंकी मै पहली बार उसके दुकान मे गया था.

लेकिन उसने वह बात इतने कॉन्फीडंस से कही थी की उसे कुछ कहने की बजाय मैने ही अपने आपको को समझाया की शायद गलतीसे वह मुझे कोई और समझ रहा हो. बात झुमकोंकी बोलू तो वह झुमके खरीदने की मेरी बिलकुल इच्छा नही थी. अब तक के अनुभवसे मै अपनी बीवीकी मानसीकता अच्छी तरह से समझ चुका था. मै अगर झुमकोंको खराब कहूं तो वह उसे जरुर खरीद लेगी. इसलिए मैने कहा " बहुतअच्छे है ... कसमसे आपको बहुत जचेंगे'

" ठीक है ... मेरी बहन के लिए भी एक पेअर पॅक कर देना' उसने मुझे पैसे चुकाने के लिए इशारा करते हूए कहा.

अब करने लायक कुछ नही बचा था. चुपचाप पैसे निकालकर मैने दुकानमालीकको दिए. शायद मेरे बिवी की मानसीकता पहचाननेमें मैने देर लगा दी थी. उसकी मानसीकता पहचानके पहले उसनेही मेरी मानसीकता पहचान ली थी.
एक जगह रास्ते के किनारे एक ज्योतिषी बैठा था. वहां " हमारा पत्थर पहनीए और अपना भविष्य बदलीए'. ऐसा बोर्ड लगाया हूवा था. मेरी पत्नी ने मुझसे उसके पास चलने का आग्रह किया. आग्रह कैसा हठ किया. असल में वह हठ के सुनहरे मुलायम कपडेमे लपेटी हूई मीठी धमकी थी.

मै उसे समझा बुझाने की कोशीश करने लगा. यहां समझा बुझाने के बजाय सिर्फ बुझाना ज्यादा तर्कसंगत लगता है1 " देखो जी ... वह रस्तेपर बैठनेवाला ज्योतिषी ... पहले तो भविष्य बदलने की जरुरत उसको खुद को है ... खुद अपना भविष्य बदल नही सकता वह अपना भविष्य क्या बदलेगा..1 '

" हां ... तुम्हारे होते हूए तो अपना भविष्य बदलने से रहा' वह तनकर बोली.

आगे वह कुछ नही बोली. वैसे इतना कुछ बोलने के बाद आगे बोलने का और क्या बचा था शायद उसने अपना हठ छोड दिया था या फिर उसे मेरी बात नही जची थी. सच्चाई घर जाकर ही पता चलनी थी.

फिर हम बस स्टॉप चले गए. बेंचपर बैठकर हम सिटी बस की राह देखने लगे. एक लंगडा, अंधा भिकारी गाना गाकर पैसे मांग रहा था. सबको उसपर दया आने लगी. बहुत लोगोंने उसे पैसे दिए इसलिए मैने भी दिए. और मैने दीए इसलिये हमारे बाजूवालेने भी दिए. नेबर टेडंसी1 पडोसीने गाडी ली ना फिर मैभी लेता हू ऐसे. उसके लिये भलेही कर्जमें डूबने नौबत क्योंना आये. थोडी देर में एक और भिखारी "मेरी मां बिमार है' कहते हूए हाथ फैलाने लगा. उसको किसीनेभी पैसे नही दिए इसलिए मैनेभी नही दिए. और मैने नही दिये इसलिये हमारे बाजुवालेने भी नही दिये वह जाता नही की उसके पिछे वे तालियां बजाने वाले आ गए .. तृतीय पंथी उनको पैसे ना देने की किसकी हिम्मत. सब लोगोंने चुपचाप उसे पैसे दे दिए. नही दोगे तो सिधा जेब मे हाथ डालकर पैसे लेने की उनकी मजाल. वैसे पैसे निकालने के लिए वे सामनेवाला आदमी देखकर अलग अलग नुस्खे अपनाते है.

" ए चिकने ...दे ना' किसीके गाल को हाथ लगायेंगे. या फिर " ए भिडू ...दे ना' कहकर कही और हाथ लगायेंगे.

" यहां अगर जादा देर बैठे तो थोडी देर बाद कही हमें भीख मांगने की नौबत ना आ जाए' मैने मेरे पत्नीसे उसके सामने हाथ फैलाने की चेष्टा करते हूए मजाक में कहां.

ऐसे मजाक की हवा निकालकर उसे कैसे भद्दा बनाना तो कोई मेरे बिवीसे सिखे... अपने गंभीर चेहरे को और गंभीर बनाते हूए झट से उसने अपने पर्स से अठन्नी निकाली और सब बैठे हूए लोगोंके सामने मेरे फैलाए हूए हाथपर थमा दी.

भिखारीयोंसे बचनेके लिए मै बगल के एक स्टॉल पर गया. वहां सामने एक शायद किसी खाने के चीज का पाकीट लटका हूवा था. उस पर लिखा हूवा था "अब पहले से बढिया स्वाद में'. स्वाद और वह भी बढीयां. मेरे मुंह मे पाणी आ गया . मैने पुछा "क्या है?'. उसने रुखे स्वर में कहां "कुत्ते का बिस्कीट' मेरे मुंह का पाणी उल्टे पांव लौट गया . कुत्ते का बिस्कुट ... अब पहले से बढिया स्वाद में. अब इसके पहले के स्वाद में और अब के स्वाद में फर्क है या नही ये देखनेके लिये या तो आदमी को कुत्ता बनना पडेगा. ... या फिर कुत्तेको पढना लिखना सिखना पडेगा

" अजी सुनीये ... गाडी आ गई... नही तो हमेशा की तरह...' श्रीमतीजीकी आवाज आया. उसने आगे भी कुछ कहां.. वह मुझे सुनाई दिया नही ऐसा नही... बल्की वह मैने जानबुझकर सुना नही ... हमेशा की तरह... आदत के अनुसार.
आज ऑफिस जाने के लिए घरसे थोडा जल्दीही बाहर निकला. लेकीन एक आफत से छुटकारा पाओ तो वह दुसरा रुप अख्तीयार लेती है ... इसका मुझे थोडीही देरमें साक्षात्कार हूवा. बस आने के लिए आधा घंटा बाकी था. अब क्या किया जाए? सोचते सोचते याद आगया ...

" टाईम पास करने के लिए मार्केटिंगसे अच्छा दुसरा कोई तरीका नही ... कुछ खरीदने की जरुरत नही ... सिर्फ पूछ ताछ करते रहो ' किसी प्रसिध्द लेखक ने एक किताब मे लिख रखा है.

फिर क्या अगल बगल में देखा. बिना कुछ सोचे मै एक दुकान मे घुस गया. दुकानमालीक ने बडी मुस्कुराहट के साथ मेरा स्वागत किया. वहां लटकी हूई चिजे मै देखने लगा. लेकिन बहुत देर से सिर्फ मै चीजे निहार रहा हू ये देखकर उस दुकानमालीक की मुस्कुराहट ने अपना उग्र रुप अख्तीयार लिया.

" क्या चाहिये साब?' उसने पुछा.

फिरभी मै उसकी तरफ ध्यान नही दे रहा हू यह देखकर वह बोला " जल्दी बोलो साब ... सुबह सुबह टाईम खोटा मत करो'.

अब पाणी सर से उपर नही जाना चाहिए इसलिये मैने वहां लटके एक छातेका सहारा लिया.

" कितनेका है ?' मैने उस छाते को छूकर पुछा.

" दो सौ रुपए ...' उसने कहा

मैने अब छाता हाथ में लेकर निहारना शुरु किया. दुकान मालीक अंदर चला गया और उसके जगह उसका नौकर आकर खडा होगया.

मैने उस नौकर से पुछा " इसमें वे अलग-अलग रंग के होते है ना?'

कुछ ना बोलते हूए वह स्वयंचलीत खिलौने जैसा अंदर गया और चार पांच रंग के छाते ले आया.

मैने कहा "लेकिन इसपर सफेद रंग का डिजाईन भी होता है?'

" हां होता है ... लेकिन हमारे पास का वह माल खतम हो गया है' नौकरने कहा.

मैने चैन की सांस ली. चलो यहांसे खिसकने का यह अच्छा बहाना है.

दुकान से जाने के लिये पलटा तो अंदरसे दुकान मालीक की आवाज आई " क्यों क्या हूवा?'

मैने कहा, " मुझे नीले कलर का ... उसपर सफेद डिजाईनवाला छाता चाहिए था... लेकिन आपके यहां नहीं है शायद'

" कौन बोलता है नही है...' वह नौकर पे चिल्लाया. लेकिन नौकर वहां नही था. वह शायद अंदर गया था.

उसने नौकर को आवाज दिया, " टॉमी...'

पता नही इतने देरमे नौकर कहां गायब हो गया था.

उसने गुस्से से नौकर को आवाज दिया " कहा मर गया ... टॉमी...'

गलीमें घुमता हुवा एक आवारा कुत्ता दौडते हूये वहां आगया.

कुत्ते को देखकर तो दुकान मालीकको और गुस्सा आगया.

उसने वहां बैठे हूवे दूसरे एक लडके को पास बुलाया. शायद वह उसका नया ट्रेनी नौकर था.

" बगल के दूकानसे ब्लू कलरके और सफेद डिजाईनवाले चार पाच पीस लेके आना ... जल्दी' मालीकने आदेश दिया. वह लडका हिंन्दी मे शायद थोडा कच्चा था. इसका ज्ञान हमें थोडी ही देर में हूवा. उसको दूकान मालीकने जो भी कहा बराबर समझमें नही आया. लेकिन गुस्साये हूवे दूकान मालीकसे पुछनेकी उसकी हिम्मत नही बनी. वह भागते हूए वहांसे दो चार दूकान छोडके चला गया. उसको वहां एक सलून की दूकान दिखाई दी. उसने अपना दिमाग लगाया " बगल की दूकान यानी... बगल साफ करने की सलून की दूकान. उसको डाउट आया भी की यहां छाते कैसे होंगे. लेकिन मालिकने कहां तो जरुर होंगे. वह अंदर चला गया. अब उसने सलूनवालेसे छाते मांगने के बाद क्या हूवा होगा इसकी कल्पना ना करना ही अच्छा है. यह सब कहानी नौकरने वापस आकर जब अपना दाया गाल सहलाते हूए हमें बताई तब हमें मालूम पडी . इतनेमें दौडते हूवे वह पहलावाला नौकर वहां आगया.

" ... कहा मर गया था कुत्ते ...'

इतनी देर से जो दुकान मालीक को बडी आशा से निहार रहा था वह कुत्ता ... दूम दबाकर भाग गया.

" वो शर्माजीके दुकानसे ब्लू कलर के और सफेद डिजाईनवाले चार पांच पिस लेके आ ...' कहते हूवे मालीकने उसे दौडाया. नौकर दौडता हूवा चला गया. मै अब वहां से खिसकनेका दूसरा बहाना ढूंढने लगा. मैने कहा, " अगर टाईम लगता है तो रहने दो .. मै बादमे कभी आउंगा...वैसेभी बारीश को अभी बहुत टाईम है'

" टाईम कायका साब ... दो मिनट का काम है' उसने लगभग मेरी कलाई पकडते हूवे कहा. अब तो भागनेकाभी चांन्स नही था. वह नौकर दौडते हूये छाते लेकर आया. उसने सब छाते मेरे सामने रखे टेबलपर पटके. मुझे यकिन हैकी उसने पटकते वक्त उस टेबल को जरुर मेरा सर समझा होगा... और छातोंके बंडल को उस दुकान मालीक का सर. उसमें से एक लेकर मैने पुछा " ये कितने का है'

उसने वह छाता उलट पुलटकर देखा. एक जगह कुछ तो लिखा हूवा था. उसके साथ मै भी पढने की कोशीश करने लगा. एक जगह कुछ 1625 ऐसा लिखा हूवा देखकर तो मेरी धडकन ही तेज होगई.

" ढाईसौ रुपए..' दुकान मालिकने झट से कहां.

मै गौर करके देखने लगा की ढाईसौ कहां लिखा है. ढाईसौ कही भी नही लिखा था. फिर मै मन ही मन 1625 को 2 से 3 से 4 से डीव्हाईड करने की कोशीश करने लगा . जितनी मुझे आती थी उतनी सारी गणीती प्रक्रीयायें मैने 1625 पर करके देखी . लेकिन किसी भी सुरतमें ढाईसौ आने का नाम नही ले रहा था. शायद मेराही णीत कच्चा हो. इतनेमें एक दुसरे कस्टमर से दुकान मालीक का ध्यान बंट गया तो मै उस छाते को वहां वैसा ही रखकर वहांसे खिसकने लगा. पिछे से दुकान मालीककी आवाज आई "अब क्या हूवा?'

मैने जाते जाते पलटकर कहा " महंगा है'

" अरे तो आप बोलीये ना आपको कितने में चाहिये ' उसने कहां.

" जाने दो .. मुझे लेना ही नही' मेरे मुंह से निकल गया.

ये सुनते ही दुकान मालीक आग बबुला हो गया. वह गुस्से से बोला " अरे ऐसे कैसे लेने का नही...

... इतनी देर से हमारा टाईम खाया ... और अब बोलता है लेने का नही... इस दुकान को क्या बगीचा समझ रखा है ... बैठे तो बैठे नही तो चले गए.

मैने फिर अपने आपको संभालते हूए कहा "लेकिन बहुत महंगा है'

" तो तुम बोलो ना कितने मे चाहिए... देखुतो तुम्हारी हैसीयत क्या है?' वह "आप' से "तुम' पर आ गया था.

मैने डरते हूए आजूबाजू देखा. आखिर इज्जत का और हैसीयत का सवाल था.

मैने धिमेसे कहा " पचत्तर मे दो'

बुरासा मुंह बनाकर वह बोला "पचत्तर... रुपए या पैसे'

" पचत्तर रुपए' मेरे गलेसे अटकती हूई आवाज आई. वह गुस्सेसे सब छाते बटोरने लगा. वह आगे कुछ कहकर अपना और अपमान ना कर दे इसलिये मै जाने के लिए मुडा.

" ए रुक... जाता किधर है ... ' वह तुच्छतासे बोला.

" ये ले ... सुबह सुबह बहुनीका टाईम है इसलिए... नही तो पचत्तर रुपएमें इसका डंडा भी नही आता ... वैसे भी हम सुबह आये भिखारी को भी तो खाली जाने नही देते...' ऐसा कहते हूए उसने वह छाता लगभग मेरी ओर फेंक दिया. मैने क्रिकेटर की चपलता से उस छाते को कॅच किया. कॅच भी मैने ही किया और आऊट भी मै ही हुवा था चुपचाप 75 रुपए निकालकर दुकान मालिकके हाथ में थमा दिए और अपने मस्तक का पसीना पोछते हूए दुकान से बाहर निकला. असलमें पसीना पोंछनेसे अपने चेहरेके भाव छिपानेकी जरुरत मुझे ज्यादा महसुस हूई थी. ऍग्रेसीव मार्केटिंग किसे कहते है वह आज मुझे अच्छी तरह से समझ में आया था.
उस दुकान से बाहर निकलते वक्त बाहर सामने एक जुते की दुकान दिखी. वहां बोर्ड लगा था "एक के उपर एक फ्री' . अब दायें जुते के उपर बाया जूता फ्री ... या फिर बाये जूते के उपर दाया जुता फ्रि... या फिर एक पेअर के साथ दूसरी पेअर फ्री...ये उस दुकान मालिक को पुछने की मेरी प्रबल इच्छा हूई. लेकिन अभी अभी आये ताजा अनुभवसे मेरी उस दुकान में जानेकी हिम्मत नही बनी.

रस्तेसे जाते हूए अपनी झेंप छीपाने के लिये उस छाते को कभी जेबमें तो कभी कॉलर मे लटकाने की कोशीश करने लगा. गले मे लटकाते हूए एक विचार मेरे मन मे आया ... अरे यह तो जबरदस्ती गले पडा हूवा छाता है इसको और गले मे लटकाने की क्या जरुरत.

अनायास ही एक पतली गलीमें मेरा ध्यान गया. वहां कोने मे उस दिन मिला अंधा, लंगडा भिखारी मस्त खडा होकर सिगार पीता हूवा दिखाई दिया. इसका मतलब वह लंगडा नही था और शायद अंधा भी नही था. मुझे तो विश्वास ही नही हो रहा था. उसने हम सबको उल्लू बनाया था. उल्लू सी सुरत लेकर मै थोडा और आगे निकल गया . वहां रस्तेके किनारे लोगोंकी भीड जमा हूई थी. कभी कभी भीड ऐसे ही जमा हो जाती है. दो लोग जमा हो जाते है. वे दो क्यों जमा हूए ये देखने के लिये और तिन जाते है...और तिन के पिछे और छे... ऐसे मै भी भीड मे घुस गया... देखता हू तो उस दिन मिला दुसरा भिखारी जो "मेरी मां बिमार है' कहकर भिख मांग रहा था .. वह किसी वृध्द महिला का सर अपने गोद में लेकर जोर जोर से रो रहा था. वह महिला मर गई थी ... शायद उसकी मां थी. उस दिन कितनी विवशता से पैसे मांग रहा था बेचारा. उसको कोई समझ नही पाया था ... या फिर वह अपनी जरुरत की ठीक ढंग से मार्केटिंग नही कर पाया था.

इतने मे वह दुसरा झुठा लंगडा अंधा भिखारी लंगडता हूवा वहां आया. उसकी मौके की नजाकत को पहचानने की काबीलीयत तो देखो. झट से उसने एक कॅप उलटी की और लडखडाता हूवा " उसकी मां को जलाने को पैसे दो' करके भीख मांगने लगा ... ही इज अ परफेक्ट मार्केटींग मॅन ... यहां अगर कोई मार्केटिंग के लोग बैठे हो तो माफ कर देना भाई.

मै और मेरी बीवी मार्केटिंग निपटाकर घर लौट रहे थे. उस भिखारी की मां को मरे हूए 7 - 8 दिन हो गए होंगे. तो भी वह चित्र मेरी आंखो के सामनेसे हटते नही हट रहा था. उस झुठे लंगडे अंधे भिखारी ने सबको बेवकुफ बनाया था. जिसे असली जरुरत उसको किसीने भी पैसे नही दिए थे. आज इस भडकीले ऍड्वर्टाइज, भडकिले मार्केटिंग के युग में क्या सचमुछ अपनी समझ खत्म होती जा रही है. मै अपनी सोच में डूबा चला जा रहा था.

" वह कॉफी सेट बहुत ही सुंदर था है न?' मेरी बिवीने मेरी विचारोंकी श्रुंखला को तोडा.

मैभी अपने आप को नॉर्मल बतानेके प्रयास मे मजाक पर उतर आया.

" हां बहुत ही सुंदर था ... लेकिन एक चीज उस कॉफी सेट की सुंदरता बिगाड रही थी...' मैने कहा.

" कौनसी?' मेरी बिवीने पुछा.

" उसपर लगा हुवा प्राईज टॅग' मैने कहा.

थोडी देर अंधेरे मे हम चूपचाप ही चलते रहे.

" उधर देखो ... उधर गलीमें' मेरी पत्नी एक गली की ओर निर्देश करते हूवे बोली.

मैने उत्सुकतावश उस गली मे देखा. जहां उस दिन वह झूठा लंगडा भिखारी मजेसे सिगार पी रहा था. आज वहां दो लोग थे. वह झूठा लंगडा अंधा भिखारी और दूसरा जिसकी मां मरी थी वह. दोनो मजे से मस्त होकर सिगार पी रहे थे. जिसकी मां मर गई थी वह एक हाथ से सिगार पी रहा था और दूसरे हाथ से किसी राजा की तरह पैसे गीन रहा था

.... शायद वह मार्केटिंग सीख गया था.
--- The end---

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साईकिल - कॉमेडी कथा

उम्रके छे सालसे उम्रके बाईस साल तक जादातर मेरा समय साईकिलपर गया. इसलिए साईकिलके साथ एक नजदिकी एक अनोखा रिश्ता रहना लाजमी है. नजदिकी वो भी इतनी दिर्घ समय तक... यहां गलतफहमी होनेकी संभावना है . या फिर कोई कहेगा पहलेही इतने प्रकार क्या कम थे की इस नये अनोखे प्रकार का अविश्कार करनेकी जरुरत आन पडी. ... तो जिवनके बहुतसे अच्छे बुरे समयमें साईकील ने मेरा साथ निभाया.

जब मेरी सही उम्र होगई ... मतलब साईकिल चलाने के लिहाज से. तब छोटी साईकिलें नही थी ऐसा नही. लेकिन हमें सीख ही ऐसी थी की जो है उसमें एडजेस्ट करना चाहिए. इसलिए डायरेक्ट बडी साईकिल सिखने के पिछे मै पड गया. एकबार अपनी सीख भूलकर मैने घरमें जूते लेने की जिद की. जिद के बैगेर कुछ मिलनेवाला नही ऐसा मेरे बचपनके गुरु का कहना था. जुते मिले... लेकिन पीठ पर. इसलिए मै छोटी साईकिल का विचार त्यागकर डायरेक्ट बडी साईकिल सिखने लगा.

अब बडी साईकिल कैसे चलाई जाए? मेरी उम्रके लडके डंडे के निचेसे एक पैर डालकर साईकिल चलाते थे. उसे हम कैंची कहते थे. पहले पहले आधा पायडल मारकर साईकिल चलाना ... उसे हम हाफ कैची कहते थे. और पुरा पायडल मारा की होगई फुल कैंची.

मेरे अविश्कारी स्वभाव के कारण मै साईकिल जल्दी सीख गया. हाफ कैंची से फुल कैंची पर आगया. मेरा अविश्कारी स्वभाव मुझे चैन से बैठने नही दे रहा था. यहा अविश्कारी की बजाय मैने शरारती या पाजी यह शब्द इस्तमाल किया होता... . लेकिन आगे जहां जहां शरारती या पाजी यह शब्द आया है वहा कौनसा शब्द इस्तमाल करना चाहिए यह गहन प्रश्न मेरे सामने उत्पन्न हुवा होता. हमसें बडे लडके हाथ छोडकर साईकिल चलाकर शेखी बघारते थे. मै भी हाथ छोडकर साईकिल चलाने का प्रयास करने लगा. सबसे पहले मैने एक हाथ छोडकर साईकिल चलाना सिख लिया. लेकिन उतनेसे संतोष माननेवाला मै थोडे ही था. ? इसलिए दोनो हाथ छोडकर देखे. रास्तेके किनारे पत्थरोंमे जाकर गीर पडा. दोनों हाथ छोडकर कैची चला नही सकते यह मै स्वानुभव से सिख गया. वैसे गिरने का एक फायदा भी हूवा. मेरा सामने के एक दात को किडा लगा था. सारे दात गिरकर दुसरे आये थे. लेकिन वह साला गिरने का नाम नही ले रहा था. साईकिलसे गिरने की वजह से वह दात अपने आप मेरे हाथमें आया . ....अच्छा वह तो आया ही, साथ मे दुसरे एक बगलके बेगुनाह दात कोभी साथ ले आया.

जैसे जैसे उम्र बढ रही थी वैसे वैसे मेरी तरक्की हो रही थी ... मतलब साईकिल चलानेमें. अब तो मै डंडेपरसे साईकिल चलाने लगा. सिर्फ साईकिल चलानेमेंही नही तो साईकिल से जुडी सारी बातोंमें मै महारथ हासील कर रहा था. गुस्सैल टिचर की साईकिल की हवा निकालना, उनपर का गुस्सा उनके सायकिल के सिट पर उसे ब्लेड से फाडकर निकालना. उस वक्त मुझे तो हमेशा लगता था की नोबेल प्राईज में के 'नोबेल' का साईकिल को बेल ना होनेसे जरुर कोई समंध रहा होगा. एक बार मै डंडेपरसे साइकिल चला रहा था. तब बेलबॉटम की फॅशन थी. साईकिलकी बेल बजानेके चक्करमें मेरे बेलबॉटम की बेल साईकिल के चैनमे अटक गई. ऐसी अटक गई की निकालते निकल नही रही थी. खिंचकर निकालने के प्रयासमें वह पॅंट साईकिलकी चैनसे लेकर पॅंटकी चैन तक फट गई. वह देखकर हमारे क्लास की लडकियॉ मुंह पर हाथ लगा लगाकर हंस रही थी. एक बार मेरी साईकिल ढलान से जोरसे निचे आ रही थी. आगे से एक लडकी हौले हौले साईकिल चलाते हुए ढलान से उपर चढ रही थी. अचानक वह बिचमें आगई. बडी मुष्कीलसे टक्कर बच गई. लेकिन वह बेल बजाकर 'डूक्कर... डूक्कर' चिल्लाकर मझे चिढाने लगी. मै क्या उसे ऐसेही छोडता. मै भी पिछे पलटकर चिल्लाने लगा " तु डूक्कर तेरा बाप डूक्कर तेरा पुरा खानदान डूक्कर '. आगे जब मै एक डूक्कर के झूंडसे टकराकर निचे गिर गया ... तब मुझे समझमें आया की बेचारीको क्या कहना था.
साईकिलकी अलग अलग ट्रीक्स सिखनेमें मुझे जादा वक्त नही लगा. घंटी बजाकर इशारे करना, कट मारना, कट मारना यह प्रकारमे तो मैने विषेश महारथ हासिल की थी. साईकिलकी चैन कैसी बिठाना इतना ही नही तो साईकिल की चैन कैसे गिराना यह भी मै सिख गया. ताकी ऐन वक्त कीसी घरके सामने मटरगश्ती करनेमें दिक्कत ना हो. एक बार ऐसाही मै साईकिल डंडेसे चलाते वक्त अचानक गिर गया. ऐसा जोर से गिरा की पुछो मत. उठकर खडे होकर किसीकोभी टक्कर ना लगते हूए मै कैसा गिरा यह ढूंढने लगा. तबतक दो तिन तमाशबीन वहां जमा हो चूके थे. उसमेंसे एकने कहा '' चेन निकल गई है''

असलमें डंडेसे साईकिल चलाते वक्त साईकिलकी चैन निकल गई थी . इसलिए मै गिर गया था. लेकिन उसने '' चेन निकल गई है'' कहतेही कुछ ना समझते हूए झटसे मैने अपने पॅंटकी चैन चेक कर ली. हो सकता है घरसे निकलते वक्त खुली रही हो.

एक दिन मै और मेरा मित्र राजा डबलसीड़ जा रहे थे. लडकोंको डबलसीट लेनेके आगे अभी मै नही गया था. सामनेसे एक साईकिलवाला बॉल दबाये जैसे इशारे कर एक फटफटी वालेको कुछ बोलनेका प्रयत्न कर रहा था. जैसा की अपेक्षीत था पिछे बैठे राजाने पुछा, '' अरे क्या बोल रहा है वह?''

'' अरे कुछ नही ... हेडलाईट शुरु है ऐसा बता रहा है...'' मैने कहा.

'' सालोंको मुफ्तमें बिजली इस्तेमाल करने की आदतही है... क्या करेंगे '' राजा चिढकर बुदबुदाया. मै अपना चूपचाप साईकिल चला रहा था. इतनेमें सामनेसे एक दुसरी फटफटी आगई. राजाने उसके हाथकी बिच वाली ऊंगली हिलाकर उस फटफटी वालेको कुछ अजिब इशारा किया. राजा अचानक ऐसा कुछ करेगा इसकी मुझे अपेक्षा नही थी.

मै राजाको '' चूप बैठ ... मार खिला एगा क्या?'' कहकर साईकिल जोरसे चलाने लगा.

राजा पिछे मुडमुडकर उस फटफटी वालेको वही इशारा कर रहा था. वह फटफटी वाला क्या बदमाश लडके है इस अविर्भावसे देख रहा था. मैने उस फटफटीवालेको मुडकर हमारे पिछे आते देखा. मैने मन ही मन प्रार्थना की, '' भगवान... अब तुही बचारे बाबा.. कैसी दुर्बुद्धी हुई जो इस राजाको पिछे बिठाया. फिरभी राजाका अपना बिचवाली उंगली हिलाकर इशारा करना जारी था. उस फटफटी वालेने हमारे साईकिलके सामने अपनी फटफटी घुसाकर रोकी. मुझे ब्रेक लगानेके सिवा कुछ चारा नही था. उसने फटफटीसे उतरकर सिधे राजाकी कॉलर पकडकर एक जोरदार झापड उसके कानके निचे जमाया.

'' अंकल सुनो तो..'' बेचारा राजा कुछ बोलनेका प्रयास कर रहा था.

उस गाडीवालेने और एक उसके कानके निचे जमाई और फिर कहा, '' हां, अब बोल..''

'' अंकल .. कबसे मै आपको बत्तानेकी कोशीश कर रहा था की आपके गाडीका साईड स्टॅंड उपर है करके...'' बेचारा राजा लगभग रोनेको आकर अपनी बिचवाली उंगली हिलाकर बोल रहा था.
एकबार हम दोस्त दुसरे गांव गए. दूसरे गाव जाकर साईकिल चलाना और वह भी किराएसे लेकर मजा कुछ और ही होती है. वैसे दुसरे गावको करनेके लिए बहुत सारी मजेवाली बाते होती है. ... अब यह सब मैने आपको बताना नही चाहिए... क्योंकी उसमें मेराही अज्ञान जाहिर होनेका डर है... राम्याने और मैने एक साईकिल किराए से ली. राम्याके सरपर साइकिलका इतना पागलपन सवार था की किसी दुसरे गाव गए तो पहले यह क्या देखेगा की वहां साईकिलका दुकान कहा है. इतनाही नही उसे किसीने अगर बताया की अरे कल साईकिलसे जाते हूए मेरा ऍक्सीडेंट होगया है तो यह तुरंत पुछेगा ' साईकिलकोतो कुछ नही हुवा ना?'. किराएके साईकिलको कॅरीयर नही रहता है. एक डंडेपर बैठेगा और दुसरा साईकिल चलाएगा.

किराएकी साईकिल लेकर हम खुब घुमें. प्यास लगी इसलिए एक टपरीके सामने साईकिल लगाई. मस्त चाय पी. वहांसे निकले तो सिधे शाम होनेतक घुमते रहे. बिच बिचमें रुककर जेबके पैसोंका और इस्तेमाल कीये घंटोंका तालमेल होता की नही यह देखते थे. नहीतो उस साईकिलवालेको एक दिनके लिए क्योंना हो.. फौकटमें पंचर निकालनेवाला मिल जाएगा. शामको साईकिल वापस करनेके लिए गए.

'' कितने हूए'' राम्याने साईकिल साईकलवालेके हवाले करते हूए पुछा.

साईकिलवाला बोला, '' अरे... यह किसकी साईकल ले आए तुम... यह मेरी साईकिल नही है...''

हम तो हक्के बक्के ही रह गए.

'' अरे तेरा दिमाग तो ठिक है?'' राम्याने कहा.

'' हम सुबह तेरेसेहीतो ले गए थे यह साईकिल''

'' वह मुझे पता है... लेकिन यह किसकी साईकिल लाई तुमने?'' साईकिलवाला बोला, '' यह विमल साईकिल स्टोअर वालेकी ... उसका दूकान बसस्टॅंडके पास है... मेरा देखो कमल साईकिल स्टोअर्स...'' उसने अपने बोर्डकी तरफ निर्देश करते हूए कहा. हमने उसके एक किलेको लटककर कसरत कर रहे बोर्डकी तरफ देखा. उस बोर्डपर क्या लिखा है यह पढनेके लिए हमें गर्दनके काफी व्यायामके प्रकार करने पडे. सचमुछ वह उसकी साईकिल नही थी.

'' अब आगई ना आफत '' मैने राम्यासे कहा,

'' राम्या... अब मेरे खयालमें आया... अरे हम जब चाय पिनेके लिए उस टपरीपर रुके थे... वहां शायद अदला बदली हूई है... और हम यह दूसरेही किसीकी साईकिल अपने साथ ले आए''

'' लेकिन साईकिलकोतो लॉक था'' राम्याने कहा.

'' उसकी चाबी इसको लग गई शायद... ऐसा होता है कभी कभी'' मैने कहा.

'' इसका मतलब अपनी साईकिल कमल सायकलवालेके पास गई होंगी..'' राम्याने कहा.

राम्याके दिमागमें सिर्फ प्याज टमाटर ही भरे ना होकर औरभी कामका कुछ भरा हुवा है यह मेरा विश्वास पहली बार दृढ हूवा. लेकिन दुसरेही क्षण राम्याने एक गहन सवाल पुछा और मेरा विश्वास भिरसे कमजोर पड गया.

'' अब हमें बस स्टॅंडपर कमल साईकिल स्टोअर्सवालेके पास जाना पडेगा.. जाते हूए हम उसके इस साईकिलपर जा सकते है... लेकिन वापीस आते हूए कैसे आएंगे.''

हम दोनो फिरसे साईकिलपर बैठे और बस स्टॅंडकी तरफ रवाना हो गए... कमल साईकिलवालेके पास.

वहां पहूंचे तो '' यह आगई ... यह आगई '' कहते हूए एक ग्राहकने खुशीसे हमारा स्वागत किया.

उसके पास हमारी साईकिल थी. दोनो साईकिलें दिखनेमें एकदम सेम-टू-सेम थी. मानो सगी बहनें हो. वह ग्राहक अकेला था और हम दो थे.

हम दोनोंको देखकर वह चिढते हूए लेकिन दबे स्वरमें बोला, '' अरे कैसे हो तुम लोग? ... अपनी साईकिल के बजाय मेरीही साईकिल ले गए''

'' तुम ले गए की हम?'' गिनतीमें हम दो होनेका फायदा लेते हूए राम्या उसपर हावी हो गया.

'' तुम्हारा अच्छा ... कमसे कम लॉक तो खुला ... मेरा तो लॉकभी नही खुला... इतनी दुरसे पिछवाडा उपर कर कर चलाते हूये लाया इसको..'' वह फिरसे चिढकर बोला.

इसने पिछवाडा उपर कर साईकिल कैसी चलाई होगी इसकी कल्पना मै नही कर पा रहा था. मेरी तो हिम्मत नही बनी लेकिन राम्या सिधा उस आदमीके पिछवाडेकी तरफ अविश्वाससे देखने लगा. मेरे प्रश्नार्थक मुद्राकी तरफ और राम्याका अविश्वासभरी नजरका रुख देखकर वह बोला, '' अरे भले लडको... पिछवाडा इस साईकिलका ... मेरा नही... इस साईकिलका लॉक खुला नही इसलिए इसका पिछला पहिया उठाकर यहांतक धकेलते हूए लाया इसको...'' उसने साइकिलका पिछला पहिया उठाकर दिखाते हूए कहा.
अब हम साईकिलपर बैठकर काफिलेमें जाने लगे थे. काफिलेंमें साइकिल चलाना मतलब मजाक नही. एक का भी संतूलन बिगड गया तो बाकिका साईकिलके साथ गिरना लगभग निश्चीत. वैसे संतूलन बिगडनेकीही उम्र थी वह. हम 8-9 लोग गृपमें कॉलेज जाते थे. एक दिन गृपमें जाते वक्त ढीश... ट्यू... कीसीके ट्यूब फटनेका आवाज आया. हम सबलोग खिलखिलाकर हसने लगे. शाम्या मोटा होनेसे हसते वक्त पहले सिर्फ उसका शरीर हिलता था और हसनेका आवाज बादमें आताथा. जैसे बिजली चमकने के बाद होता है - पहले बिजली दिखती है और आवाज बादमें आता है. जबकभी हंसनेकी बात होती तब हंसनेकी पहली फेरी होनेके बाद हम शाम्याको हंसते हूए देखकर हंसनेकी दूसरी फेरी शुरु करते थे. शाम्याका चेहरा हसते हसते एकदमसे मायूस हो गया जब उसे पता चला की उसकेही साईकिलका ट्यूब फटा है.


एकबार हमारे साईकिल गृपका जोक सेशन हूवा. सेशनकी खांसीयत यह थीकी सब जोक्स साईकिलकेही थे. सबकी अपेक्षाके अनुरुप पहला जोक शाम्याने बताया - जोक बताने वक्त उसके पात्र भी हमारेंमेंसेही रहते थे ताकी जोकका औरभी मजा आए -

शाम्या जोक बताने लगा -

एक दिन सुऱ्या और संज्या साईकिलपर डबलसिट जा रहे थे. उनको एक ट्रफिक पुलिसने रोका. वह पुलिस उनको फाईन लगाने के उद्देशसे उनकी कसकर जांच पडताल करने लगा. लेकिन कुछ नही मिला. तब संज्याने गर्वसे कहा - आप हमे कभी पकड नही सकोगे... क्योंकी हमारा भगवान हमेशा हमारे साथ रहता है... ऐसा क्या फिर मै आप लोगोंको टीबलसीट साईकिल चलानेके जुर्ममें फाईन लगाता हूं ...

फिर संज्या जोक बताने लगा -

एकबार शाम्या मोट्या पैदल कॉलेजमे जा रहा था. पहले तो वह पैदल कॉलेजमें जा रहा था यही सबसे बडा जोक ... और दुसरा जोक, उसे एक साईकिलवालेने टक्कर मारी. टक्कर मारकर उपरसे वह साईकिलवाला बोलता क्या है - ' तुम किस्मतवाले हो ... तुम बडे किस्मतवाले हो'. शाम्याने पुछा 'कैसे?'

'' क्योंकी जनरली मै बस चलाता हूं..''

अब सुऱ्या जोक बताने लगा -

एक बार शाम्या नई कोरी साईकिल लेकर आया. तब संज्याने उसे पुछा - 'अरे नई साईकिल ली क्या?'

शाम्या बोला, ' अरे नही ... कल क्या हूवा ... मै घर जा रहा था तब सामनेसे एक सुंदर लडकी इस साईकिलपर आई. उसने साईकिल रोडपर फेंक दी. मेरे पास आकर उसने उसके बदनपरके सारे कपडे निकालकर रोडपर फेंक दीए और मेरे करीब आकर मुझे बोली, '' ले तुझे जो चाहिए वह ले''

संज्या बोला, '' तुमने बहुत अच्छा किया साईकिल ली ... क्योंकी कपडे तो तेरे कुछ काम नही आए होते''


कॉलेज खतम हूवा. जिंदगीकी रफ्तार बढ गई और साईकिल छुट गई. शायद जिंदगीके रफ्तारके सामने साईकिलकी रफ्तार कम पडती होगी. साईकिलके 'टायर' की जगह काम ना करते हूए आनेवाले 'टायर्डनेस'ने ली. साईकिलके 'सिट' के बजाय लडकोंके ऍडमिशनकी 'सीट' या फिर मंत्रीयोंके 'सीट' पर जादा चर्चा होने लगी. इतनाही नही 'स्पोक' यह शब्द 'स्पीक' का भूतकाल जादा लगने लगा. जिंदगी वही थी लेकिन जिंदगीके मायने बदल गए थे.

लेकिन अब बहुत सालोंके बाद फिरसे मै साईकिल चलाने लगा.

हर दीन .. हर दिन शामको बिस मिनट... डॉक्टरने कहां है इसलिए ! ...

समाप्त

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