28 अगस्त 2012


                या रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता
                जो हाथ जिगर पर है वोह दस्त-ए-दुआ होता

        एक इश्क का ग़म आफत और इस पे ये दिल आफत
              या ग़म न दिया होता, या दिल न दिया होता

                 ग़ैरों से कहा तुमने, ग़ैरों से सुना तुमने
             कुछ हमसे कहा होता, कुछ हमसे सुना होता

             उम्मीद तो बांध जाती, तस्कीन तो हो जाती
              वादा ना वफ़ा करते, वादा तो किया होता

           नाकाम-ए-तमन्ना दिल, इस सोच में रहता है
            यूं होता तो क्या होता, यूं होता तो क्या होता